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भक्ति का स्वाद इतना ज्यादा है। कि वो बता पाना असम्भव है।

भगवान वेदव्यास रचित महान ग्रंथ श्रीमद्भागवत पुराण जिसका रसास्वादन जनता द्वापरयुग के अंत से आज तक कर रही है। जिसमें सृष्टि के रहस्य को बड़े ही मार्मिक रूप से प्रस्तुत किया है। इसमें भगवान श्री कृष्ण की लीला और जिस विषय को बड़े बड़े महान बुद्धिमान आज भी समझ नहीं पाते। उस जीवन के सार का बड़े ही सहजता से समझाया है।


स तरति स तरति, स लोकान्स्तरयति।

वह सचमुच इस माया को पार कर जाता है, तथा संसार को भी इससे पार ले जाता है। 

अनिर्वचनीयं प्रेमस्वरूपम्। 

प्रेम-स्वरूपम् प्रेम की आंतरिक प्रकृति।

भक्ति की अंतर्निहित प्रकृति का सटीक विश्लेषण, परिभाषा या वर्णन करना कठिन है।



मूकास्वादनवत्। 

भक्ति का स्वाद इतना ज्यादा है। कि वो बता पाना असम्भव है। जिस प्रकार गूंगा व्यक्ति किसी मीठी चीज को खाकर बता नही सकता । उसी प्रकार भगवान की भक्ति है।




 
 
 

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नमो नमः

एक भारत, नेक भारत, अनेक परंपराएं

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