प्राणभूतञ्च यत्तत्त्वं सारभूतं तथैव च ।
संस्कृतौ भारतस्यास्य तन्मे यच्छतु संस्कृतम् ॥
संस्कृत भारत भूमि की प्राणभूत व सारभूत भाषा है।
संस्कृत के बिना भारत की भव्यता, यहां संस्कृति,नीतिमूल्यों, जीव का सर्वश्रेष्ठ मार्ग, ईश्वर तत्व और स्वयं को समझ पाना संभव नहीं ।
आखिर क्या है शिव जी के सूत्रों का जाल?
नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्।
उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धान् एतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम् ॥
नृत्य (ताण्डव) के अवसान (समाप्ति) पर नटराज (शिव) ने सनकादि (सनक, सनंदन,सनातन, सनत कुमार) ऋषियों की सिद्धि और कामना का उद्धार (पूर्ति) के लिये भगवान शिव ने नवपंच (चौदह) बार डमरू बजाया। तब यह चौदह शिवसूत्रों का ये जाल (वर्णमाला) प्रकट हुयी।"
इसी ध्वनियों से व्याकरण का प्रकट हुआ। महर्षि पाणिनि ने इन सूत्रों को देवाधिदेव शिव के आशीर्वाद से प्राप्त किया जो कि पाणिनीय संस्कृत व्याकरण का आधार बना।
माहेश्वर सूत्रों की कुल संख्या १४ हैं।
१. अइउण्।
२. ऋऌक्।
३. एओङ्।
४. ऐऔच्।
५. हयवरट्।
६. लण्।
७. ञमङणनम्।
८. झभञ्।
९. घढधष्।
१०. जबगडदश्।
११. खफछठथचटतव्।
१२. कपय्।
१३. शषसर्।
१४. हल्।



शिव सूत्र का वर्णन
माहेश्वर सूत्रों की व्याख्या के रूप में ‘नन्दिकेश्वरकाशिका’ के २७ पद्य मिलते हैं | इसके रचयिता नन्दिकेश्वर ने अपने इस व्याकरण और दर्शन के ग्रन्थ में शैव अद्वैत दर्शन का वर्णन किया है, माहेश्वर सूत्रों की व्याख्या भी की है। (उपमन्यु ऋषि) ने इस पर 'तत्त्वविमर्शिणी' नामक टीका लिखी है।